लॉकडाउन में वासना का ज्वार- 1

लॉकडाउन में वासना का ज्वार- 1

हॉट कजिन स्टोरी में लॉक डाउन में मैं गुरुग्राम में एक बढ़िया फ्लैट में अकेला रह रहा था. तभी मेरी बुआ की बेटी का फोन आया. वह दिल्ली में थी और लॉकडाउन में घर जाकर कैद नहीं होना चाहती थी.

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा नमस्कार!

मेरा नाम नीलेश शुक्ला है, मैं 27 वर्ष का हूँ और मूल रूप से इलाहबाद से हूँ.
मेरे परिवार वाले मुझे ‘नीलू’ कह कर ही पुकारते हैं अक्सर!

मैं काफी समय से अन्तर्वासना का पाठक हूँ, और सत्य अनुभव पर आधारित यह कहानी लिखने की प्रेरणा मेरे कुछ प्रिय लेखक हैं, जिनकी लेखन शैली इतनी उत्कृष्ट और आकर्षक है कि पाठक पढ़ते हुए स्वयं को उस कहानी के अंदर महसूस करता है.
अतः मैंने भी सोचा कि मैं भी अपनी इस सत्य कथा के माध्यम से आपसे अपनी आप बीती हॉट कजिन स्टोरी साझा करूँ.

इस लेख की भाषा में मैंने अधिकतर हिंदी और हिंगलिश के शब्दों का प्रयोग किया है, जो मेट्रो शहरों में बातचीत का आम लहज़ा बन गया है.
यह मेरी पहली रचना है, अतः कोई भी त्रुटि या कमी के लिए पहले ही पाठकों से माफ़ी चाहता हूँ.

वर्तमान में पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हूँ.
लगभग 6 फ़ीट की हाइट और कसरती बदन के साथ एक आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक होने के कारण मेरे आज तक काफी लड़कियों के साथ सम्बन्ध रहे हैं.

किन्तु कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जिनकी अपनी एक अलग कसक, एक अलग खनक और एक अलग स्वाद होता है और वे जीवन में अपनी एक अमिट छाप छोड़ जाते हैं.

अपने जीवन के एक ऐसे ही ख़ास अनुभव को मैं आपसे साझा कर रहा हूँ जिसने मुझे बहुत हद तक बदल कर रख दिया.

अपने जीवन की जिस घटना का उल्लेख मैं करने जा रहा हूँ वह 2020 में घटित हुई थी.

उस समय मैं अपनी इंजीनियरिंग की सफल पढ़ाई के पश्चात गुरुग्राम में एक कंपनी में बतौर सॉफ्टवेयर डेवलपर काम कर रहा था.

काम करते हुए मुझे लगभग 2 साल हो गए थे.

2019 में अपने रहने के लिए मैंने अपने एक मित्र अखिल के साथ गुड़गाँव शहर के थोड़ा बाहरी इलाक़े में सोहना हाईवे की तरफ एक बहुमंजिला सोसाइटी में एक 2BHK फ्लैट किराये पर ले लिया था.

हम दोनों में गहरी मित्रता थी और खूब पटती थी.

हमारे बीच पार्टियों से लेकर लड़कियों की बेशर्मी से चर्चा होती थी.
अखिल भी गुड़गाँव में एक अन्य कंपनी में सेल्स लीड की भूमिका में कार्यरत था.

हमारा फ्लैट उन्नीसवीं मंजिल पर था.

सोसाइटी मुख्य शहर से दूर होने के कारण पूर्णतः फर्निश्ड लक्ज़री फ्लैट के बाद भी उसका किराया काफी कम था.
बाइपास और फारेस्ट एरिया से पास होने के कारण हमारे इलाके में खूब हरियाली और न के बराबर शोरगुल था.
ऑफिस से थोड़ा दूर था, परन्तु मानसिक शांति के परिप्रेक्ष्य से उस इलाक़े का कोई मुक़ाबला न था.

मकान मालिक कनाडा में रहता था और कोई हस्तक्षेप नहीं करता था.
हम भी समय पर किराया पंहुचा दिया करते थे.

सोमवार से शुक्रवार काम में व्यस्त रहने के बाद उस फ्लैट पर एक अलग ही सुकून मिलता था.

मास्टर बैडरूम मैंने और दूसरा बैडरूम अखिल ने ले लिया था.
इसके अतिरिक्त फ्लैट में फ्लैट में एक छोटा स्टडी रूम था जिसकी हमें तब तक ज़रूरत नहीं पड़ी थी, अतः हम स्टोररूम जैसे ही उसका उपयोग करते थे.

खाने और सफाई के लिए हमने एक नौकरानी भी लगवा ली थी.
उस समय गुड़गाँव में मेरी एक गर्लफ्रेंड भी थी श्रद्धा … जिसको डेट करते हुए मुझे लगभग डेढ़ साल हो गया था जबकि अखिल सिंगल था.

कुल मिलाकर हम दोनों मित्र नौकरी करते हुए मस्ती से अपना बैचलर जीवन जी रहे थे.

दिसंबर 2019 में अखिल ने बुझे बताया कि उसका बैंगलोर में एक बड़ी कंपनी में सफल इंटरव्यू हुआ है, बढ़ोतरी के साथ नयी नौकरी मिल गयी है और उसे जनवरी से ही ज्वाइन करना होगा.

20 जनवरी के आसपास अखिल अपना अधिकतर सामान लेकर बैंगलोर के लिए निकल गया.
किंतु चाबी मेरे हाथ में थमाते हुए अपनी कार यहीं छोड़ गया यह कहकर कि एक-आध महीने में बैंगलोर में अपना डेरा जमाने के पश्चात वह वापस आएगा और अपनी कार लेकर जाएगा.

चूँकि फ्लैट का किराया अधिक नहीं था इसलिए मैंने अकेले ही फ्लैट रखने का निश्चय किया यह सोचकर कि यदि कोई ऐसा मित्र मिले जिससे समन्वय बने तो वह अखिल की जगह रह सकेगा.

अखिल के जाने के बाद उस आलीशान फ्लैट में मैं अकेले रहने लगा.

फरवरी 2020 मध्य से कोरोना वायरस की खबरें (जो अबतक लोग हल्के में ले रहे थे) रफ़्तार पकड़ने लगी और फरवरी अंत तक समाचार का मुख्य हिस्सा बन गयी.

मार्च के पहले हफ्ते में जब कोरोना के फैलने की खबरें चरम पर थी, मेरे ऑफिस ने सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य से अनिश्चितकालीन ‘वर्क फ्रॉम होम’ की घोषणा कर दी.

मैंने अपने फ्लैट में स्टडीरूम को अपना ऑफिस बना लिया और मास्टर बैडरूम पहले से मेरे पास ही था.
बस अखिल का कमरा था जो खाली था.

7 या 8 मार्च की बात है.
दोपहर के समय मैं ऑफिस के काम में व्यस्त था.

अचानक से मेरा मोबाइल फ़ोन बजा, जो नाम स्क्रीन पर चमका उसको देखते ही मैं थोड़ा सा चौंका.
“Moni Di Kanpur”

मोनी, जिसका पूरा नाम मोनिका भारद्वाज था, मेरी कानपुर वाली बुआ की लड़की थी और मुझसे पांच साल बड़ी थी.

मोनिका ने मास्टर्स तक की पढ़ाई कानपुर से ही की थी और अगस्त 2019 में दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस के एक कॉलेज में पी०एच०डी में दाखिला ले लिया था.
साथ ही साउथ दिल्ली में ही एक गर्ल्स पीजी में कमरा ले लिया था.

मोनिका जब दिल्ली शिफ्ट हुई थी, तब उसका एक बार फ़ोन आया था और हमारी बात हुई थी.
किन्तु अब तक मिलने का अवसर नहीं मिला था; सच कहूँ तो मैंने प्रयास भी नहीं किया था, मैं नहीं चाहता था की मेरी रिश्तेदारी में किसी को भी मेरे बैचलर जीवन और मॉडर्न रहन-सहन का किसी को भी पता चले क्योंकि समस्त परिवार में मेरी छवि एक प्रतिभाशाली और परिश्रमी छात्र की थी.
अतः मैं परिवार के लोगों से और रिश्तेदारी में काफी रिज़र्व रहता था.

मोनी और मैं बचपन में छुट्टियों में काफी बार मिलते थे, कभी इलाहबाद में तो कभी कानपुर में.

हमारी अच्छी पटती थी लेकिन मोनी के हाई-स्कूल के पश्चात से हम बराबर संपर्क में नहीं थे.
मिले थे तो बस पारिवारिक शादी-ब्याह और अन्य पारिवारिक समारोह पर.

लगभग साढ़े तीन- चार साल पहले हम एक पारिवारिक फंक्शन में आखिरी बार मिले थे.

खैर, इन सब विचारों के बीच मैंने फ़ोन उठाया.
दूसरी तरफ से वही पहचानी हुई, चुलबुली आवाज़, तंज कसते हुए- नीलू!! कभी बहन को भी याद कर लिया कर!
मैंने कहा- दीदी, इतने दिनों बाद कैसे याद किया? कैसी हो आप? क्या हाल चाल है?

मोनी ने कहा- तेरी सवाल पे सवाल पूछने की आदत गयी नहीं अब तक! हाल चाल सब बढ़िया है, पी जी में हूँ फिलहाल. लेकिन कुछ दिक्कत हो गयी है. इसीलिए तुझे फ़ोन किया!
“दिक्कत? क्या हो गया ऐसा दीदी?”

“अरे तू न्यूज़ नहीं देखता क्या!? पता नहीं ये कोरोना वायरस क्या बला है. शुरुआत में तो मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन कल कॉलेज से नोटिस आया कि कॉलेज बंद हो रहा, पता नहीं कब तक. सारी क्लासेज और रिसर्च का काम सब ऑनलाइन चलेगा. भाई मुझे तो सच में टेंशन हो रही. पी.जी. की लड़कियाँ खाली करने की बात कर रहीं. मेरी रूममेट दिव्या के तो घर से आज फ़ोन आया था, उसके पापा उसको लेने आ रहे 2 दिन में सारे सामान के साथ. समझ नहीं आ रहा क्या करूँ … सब कुछ इतना अचानक से हो रहा!”

“सारी न्यूज़ देख रहा मैं दीदी, कोरोना की वजह से यूरोप, खासकर इटली में बुरा हाल है … वायरस तेजी से फ़ैल रहा. मेरे ऑफिस ने तो बीते हफ्ते से ही वर्क फ्रॉम होम कर दिया है सबका!”

“तो तेरा क्या प्लान है … घर निकलने का सोच रहा?”
“नहीं दीदी … मैं तो यहीं रुक रहा अपने किराये के फ्लैट में!”

मोनी ने लगभग हँसते हुए कहा- वाह भाई! गज़ब कॉन्फिडेंस है तेरा. कोई गर्लफ्रेंड है क्या जिसकी वजह से रुका हुआ है?
“क्या दीदी आप भी ना न… कुछ नहीं है ऐसा; फ्लैटमेट था, वह भी 2 महीने पहले चला गया, अकेला ही रहता हूँ. लेकिन 2 दोस्त दूसरी सोसाइटी में 15-20 मिनट दूर रहते हैं, तो मिलजुल कर देख लेंगे जो भी होगा!”